किसी ने खूब लिखा लेखक का तो मुझे पता नहीं पर.लिखा ग़ज़ब है
तेरे कदमो पे सर होगा, कजा सर पे खडी होगी,
फिर उस सजदे का क्या कहना अनोखी बन्दगी होगी,
नसीम-ए-सुबह गुनशन में गुलो से खेलती होगी,
किसी की आखरी हिच्चकी किसी की दिल्ल्गी होगी,
दिखा दुँगा सर-ए-महफिल, बता दुँगा सर-ए-महशिल,
वो मेरे दिल में होगें और दुनिया देखती होगी,
मजा आ जायेगा महफ़िल में फ़िर सुनने सुनाने का,
जुबान होगी वहाँ मेरी कहानी आप की होगी,
तुम्हे दानिश्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नजर आखिर नजर है बेइरादा उठ गई होगी,
लिखते लिखते तुझे मैं खुद से जुदा हो बैठा।
दर्द दे - दे मुझे तू मेरा खुदा हो बैठा।।
इतना मसरूफ़ हो गया तेरी मोहब्बत में।
मैं 'अल्पेश' खुद के घर का पता खो बैठा।।
गैरों से क्या गिला जब दिल मेरा मेरा न हुआ।
दिल का मेरे एक टुकड़ा मुझसे खफ़ा हो बैठा।।
जीने मरने की साथ बातें जो करता था कभी।
मेरा अब वो ही चहीता भी गैर हो बैठा।।
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