जय सीयाराम # jai shree Ram

चिदानंदमय देह तुम्हारी। 
बिगत बिकार जान अधिकारी॥
नर तनु धरेहु संत सुर काजा। 
कहहु करहु जस प्राकृत राजा॥ 

अर्थ:-आपकी देह चिदानन्दमय है (यह प्रकृतिजन्य पंच महाभूतों की बनी हुई कर्म बंधनयुक्त, त्रिदेह विशिष्ट मायिक नहीं है) और (उत्पत्ति-नाश, वृद्धि-क्षय आदि) सब विकारों से रहित है, इस रहस्य को अधिकारी पुरुष ही जानते हैं। आपने देवता और संतों के कार्य के लिए (दिव्य) नर शरीर धारण किया है और प्राकृत (प्रकृति के तत्वों से निर्मित देह वाले, साधारण) राजाओं की तरह से कहते और करते हैं॥ 

श्री रामचरित मानस 
अयोध्याकांड (१२६) 

स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्‌॥ 

हे कुन्तीपुत्र! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा
॥ 

भगवद गीता
उपसंहार-संन्यास की सिद्धि
(अध्याय १८) 

             भजन 
नहीं गंगा सी मैं पावन कैसे चरण पखारूँ
नहीं दृष्टि ऐसी भगवन दो क्षण तुम्हें निहारूँ

कोई जप तप नहीं है मेरा साधना मेरी में बल ना
तेरा नाम निकले न मुख से कैसे तुम्हें पुकारूँ
नहीं गंगा सी..........

भटकी हूँ नाथ मेरे जब से तुमसे हूँ बिछड़ी
जन्मों की बिगड़ी हरि जी कैसे कहो सुधारूँ
नहीं गंगा सी ..........

मेरा हाथ पकड़ो साँवल नहीं कोई और मेरा
हैं जगत के रिश्ते झूठे बस तुमको ही पुकारूँ
नहीं गंगा सी........

निर्धन हूँ बिन तुम्हारे तुम ही धन हो मेरा
अश्रु तुम्हें चढ़ाऊँ तेरी आरती उतारूँ
नहीं गंगा सी ..........

जन्मों की है प्रतीक्षा आ जाओ नाथ मेरे
क्षण क्षण विरह जलाये तेरी राह मैं बुहारूँ
नहीं गंगा सी मैं पावन कैसे चरण पखारूँ
नहीं दृष्टि ऐसी भगवन दो क्षण तुम्हें निहारूँ
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