सुनील. कुमार मेहता जी की कलम से
अब sms से ही हो जाते दिली इज़हार
खतों से इज़हारे दिल जाने ज़माना हो गया
उनकी नाज़ुक उंगलियों से पकडी कलम से पिरोए मोती
खतों में देखे भी ज़माना हो गया
वक्त ने ली है ऐसी करवटें
कि ख़त का बेसब्री से इंतजार करती
धड़कन का एहसास किये भी ज़माना हो गया
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