jai siya ram# जय सियाराम #

                         कोई किसीको सुख नहीं देता....
कोई किसीको दुख नहीं देता....
 कर्म भोग भोगते हैं....

मेरे युवान भाई बहन ....
सुख सपना.... दुख बुदबुदा ....

सुख क्या है ?....सपना ....
दुख क्या है ?... बुदबुदा ....
कब तक रहेगा ?....

सुख सपना.... दुख बुदबुदा....
 दोनों है मेहमान.....

 मेहमान कितना ठहरता है ?...कोई 2 दिन ...कोई 5 दिन.... यही एक समबल है जीवन का ....
मायूस कभी मत होना राम कथा सुनने के बाद .....

लक्ष्मण समझा रहा था गुह को ....

तो युवान भाई-बहन ....
सुख सपना ...दुख बुदबुदा ...
दोनों है मेहमान ....
स्वागत दोऊ का कीजिए.....
 जिसको भेजे भगवान.....

 कभी सुख नामक मेहमान को ठाकुर जी भेजें... कभी दुख को भेजे ....तो सन्मान हमारा अधिकार ....ये  ठाकुर जी ने भेजा है ....

और ध्यान रखना मेरे युवान भाई बहन ....अपना दुख है ना... थक जाता है ना... तो थोड़ा शॉल ओढ़कर सो जाता है ....तब हमको लगता है सुख ही है ....बाकी कोई सुखी नहीं ...वो जैसे ही चादर फेंककर उठेगा तो वैसे का वैसा सामने खड़ा रहेगा साहब.....

                मानस अयोध्या कांड 
                      जय सियाराम
       


                       ⚘अत्रिद्वारा श्रीरामस्तुति⚘
          . ⚘ नमामि भक्त वत्सलं ।कृपाल् शील कोमलं।।⚘
                 ⚘ भजामि ते पदांबजं। अकामिनां स्वधामदं।॥⚘
                 ⚘निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मंदरं।⚘
             ⚘प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि  दोष मोचनं॥⚘
               ⚘प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं।⚘
              ⚘निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं॥⚘
                ⚘दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं।।⚘
                ⚘मुर्नींद्र संत रंजनं । सुरारि वृंद भंजनं।॥⚘
               ⚘मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं।⚘
                ⚘विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं ॥⚘
              ⚘नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं।⚘
             ⚘भजे सशक्ति सानुजं। शची पति प्रियानुजं ॥⚘
             ⚘त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सराः:।⚘
                ⚘पतंति भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले॥⚘
              ⚘विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा।⚘
          ⚘निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥⚘
         ⚘तमेकमभ्दुत॔ प्रभुं। निरीहमीश्वर विभुं।⚘
          ⚘जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं॥⚘
      ⚘भजामि भाव वल्तल्भं । कुयोगिनां सुदु्लभं ।⚘
           ⚘स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं ॥⚘
         ⚘अनूप  रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं⚘
          ⚘प्रसीद मे नमामि ते।पदाब्ज भक्ति देहि मे॥⚘
              ⚘पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं।।⚘
          ⚘व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता: ॥⚘
      ⚘बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि।⚘
        ⚘ चरन सरोरुह नाथ जनि कबहुँ तजै मति मोरि॥⚘
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