*अरथ न धरम, न काम रुचि, गति न चहउँ निरबान।*
*जनम-जनम रति रामपद, यह बरदानु, न आन॥*
*मुझे न अर्थ की रुचि (इच्छा) है, न धर्म की, न काम की और न मैं मोक्ष ही चाहता हूँ। जन्म-जन्म में मेरा श्री रामजी के चरणों में प्रेम हो, बस,* *यही वरदान माँगता हूँ, दूसरा कुछ नहीं॥*
*( अयोध्या काण्ड , भरत भारद्वाज मिलन )*
*👏जय जय सियाराम👏*
*सुप्रभातम*
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