जब कभी दिलबर के लबों पर मुस्कान आ गई
चाँद शर्म से छुप गया… काली घटा सी छा गई
भटक रही थी ज़िंदगी… लिए सवाल राहों में
जो तुम मिले तो… ज़िंदगी , हर जवाब पा गई
मेरे कौन हो तुम ? 💖🎻
एहसास हो तुम उस प्रेम का,
जो उपजता है पहली बार,
नाजुक से ह्रदय में.......
स्पर्श हो तुम उस स्नेह का,
जो महसूस होता है,
किसी अपने के कंधे पर,
सिर रखने में.......
प्रतीक्षा हो तुम उस मिलन रात की,
जो दुल्हन सजाती है
अपने स्वप्नों में,अपने ह्रदय में.......
एकान्तता हो तुम,
उस सागर किनारे जैसी,
जहाँ बैठ मैं सोचती हूँ,
तुमको ,सिर्फ तुमको.......
प्रेम हो तुम,
वह प्रेम जो उपजा था,
राधा के ह्रदय से,
कान्हा के ह्रदय तक पहुँचने को,
सबसे अनभिज्ञ , सबसे सत्य.......
मैं पूछती हूँ खुद से,
आखिर कौन हो तुम?
वह कल्पना,
जो मेरे ह्रदय ने की थी प्रेम की
उस कल्पना का यथार्थ हो तुम,
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