अचलाएसगुलेरिया की कलम से
चार लोगों से बना हमारा यह समाज है
चार लोग बोलते हैं चारों की आवाज है
मेरे खान पान को चार लोग देखते
मेरी बोल चाल को चार लोग तोलते
मुझ में कृष्ण कंस को चार लोग खोजते
सीता मीरा राधा ••••••से भी यह नाराज है
आगे बढ़ने वाले का उत्साह कभी बढ़ाते हैं
पीठ पीछे बैठकर बातें कभी बनाते हैं
मुसीबत में अपना बना हाथ भी बढ़ाते हैं
पर हर किसी में रहता छोटा सा दगाबाज है
चार लोगों ढूंढेंगे चारों को बताएंगे
मेरे काम आना हम तेरे काम आएंगे
साथ तो निभाएंगे बातें ना बनाएंगे
नई विचारधारा का हो रहा आगाज है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें