मिलन , प्रेम, स्नेह का अर्क तकली पर डाला है
तब कहीं नर्म , गर्म ऊन का धागा निकाला है ||
मिलन और विरह की दो सिलाइयाँ खरीद लाई हूँ
आज तेरे लिए स्वेटर बुनना सीख आई हूँ ||
गुजरे वक्त से पीठ की बुनाई की है
कल के सपनों को पिरो आगे की सिलाई की है
तेरी वाहों की गर्मी को महसूस करती हूँ
जब मैं ऊन से स्वेटर की बाजू बुनती हूँ |
यह दो सिलाइयाँ कहाँ हैं !एक मैं एक तुम हो
दो ऐसे राही जिनको मंजिल की धुन हो |
मेरी चाहते ये रंग फूलों से चुरा लाई है
यह ऊन कारखानों में नहीं बनाई है |
दिन भर चलता है धागों का एक दूजे से उलझना
जैसे बात बात पर मेरा तुझसे ,तेरा मुझसे झगड़ना
प्यार की overdose से बुनती खराब हो गई है
मेरी आँखों से इतना गुजरी है की स्वेटर शराब हो गई है
एक तुम जिसका जबाव नहीं कोई ,
तेरे पहनते ही ये नाचीज लाजवाब हो गई है
अचलाएसगुलेरिया
Shayaripub.in
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