मैं चाहूँ भी तो वो अल्फ़ाज़ ना लिख पाँऊ
जिस में बयां हो जायें कि कितनी मोहब्बत हैं तुम से
मैं चाहकर भी ना कह पाऊँ
अल्फ़ाज़ों में बैचैनी तुम्हारी निगाहों की
महसूस करता हूँ तुम्हारी साँसों को मैं
शब्दों में बयां ना कर पाऊँ तुम्हारे लिये अपनी मोहब्बत को
कभी तो आ के बैठो मेरे पास तुम
तुम्हें बतायें कैसे गुजरी हैं
ये रातें तुम्हारे ख़्यालों में तुम बिन ।।
विष्णु
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