दीदार न सही याद ही कर लिया कर,
हम नें कब कहा हमें हिचकियों से परहेज है.
ग़ज़ल
लड़ना खुद से,खुद को सिखाऊंगा
आज नहीं तो कल,मैं जीत जाऊंगा
कुछ रस्तों ने साथ नहीं दिया मेरा
मंजिल पर बैठ कर उन्हें चिढ़ाऊंगा
मैं मुश्किलों से डरने वाला नहीं हूँ
हर एक मुसीबत से भिड़ जाऊंगा
ज़माने ने हर बार ही गिराया है मुझे
अब मैं ज़माने को,उड़के दिखाऊंगा
तरस जाएंगे आँखों में आने को मेरी
आंसुओं को कुछ इस कदर सताऊंगा
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