good morning

चादर से पैर 
तभी बाहर आते हैं

जब उसूलों से बड़े  
ख्वाब हो जाते हैं
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श्री कृष्ण ने कहा है:
ऊधो, कर्मन की गति न्यारी ..

मृत्यु के साथ रिश्ते समाप्त जाते हैं ...

एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बरू के साथ मृत्युलोक का भ्रमण कर रहे थे। गर्मियों के दिन थे। गर्मी की वजह से वह पीपल के पेड़ की छाया में जा बैठे। इतने में एक कसाई वहाँ से लगभग ३० बकरों को लेकर जा रहा था।

उसमें से एक बकरा एक दुकान पर चढ़कर मोठ खाने लपक पड़ा। उस दुकान पर नाम लिखा था - *'शगालचंद सेठ।'* 

दुकानदार का बकरे पर ध्यान जाते ही उसने बकरे के कान पकड़कर दो-चार घूँसे मार दिये। बकरा 'मैंऽऽऽ.... मैैंऽऽऽ...' करने लगा और उसके मुँह में से सारे मोठ गिर गये।

फिर कसाई को बकरा पकड़ाते हुए कहाः "जब इस बकरे को तू हलाल करेगा न, तो इसकी मुंडी मुझे देना क्योंकि यह मेरे मोठ खा गया है।" देवर्षि नारद ने ध्यान लगाकर देखा और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे।

तब तुम्बरू पूछाः "गुरुदेव! आप क्यों हँस रहे हैं? उस बकरे को जब घूँसे पड़ रहे थे तब तो आप दुःखी हो रहे थे, किंतु ध्यान करने के बाद आप हँस पड़े। इस हँसी का क्या रहस्य है?"

नारद मुनि ने कहाः
"रहने दे ... यह तो सब मनुष्य के कर्मों का फल है, छोड़ ..."
"नहीं गुरुदेव! कृपा करके मुझे इसका रहस्य बताऐं।"

अच्छा सुनो: "इस दुकान पर जो नाम लिखा है 'शगालचंद सेठ' - वह शगालचंद सेठ स्वयं यह बकरे की योनि में जन्म लेकर आया है और वह दुकानदार शगालचंद सेठ का ही पुत्र है। सेठ मरकर बकरा बना और इस दुकान से अपना पुराना सम्बन्ध समझकर इस पर मोठ खाने आ गया।

उसके पूर्व जन्म के बेटे ने उसको मारकर भगा दिया। मैंने देखा कि ३० बकरों में से कोई दुकान पर नहीं गया, फिर यह क्यों गया कमबख्त? इसलिए ध्यान लगाकर देखा तो पता चला कि इसका पुराना सम्बंध था।

जिस बेटे के लिए शगालचंद सेठ ने इतनी महेनत की थी, इतना कमाया था, वही बेटा मोठ के चार दाने खाने को नहीं देता है और खा भी लिये तो कसाई से मुंडी माँग रहा है अपने ही बाप की!"

नारदजी कहते हैं; इसलिए कर्म की गति और मनुष्य के मोह पर मुझे हँसी आ गई। अपने-अपने कर्मों के फल तो प्रत्येक प्राणी को भोगने ही पड़ते हैं और इस जन्म के रिश्ते-नाते मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाते हैं, कोई काम नहीं आता, काम आता है तो बस *भगवान का नाम :*

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥*

अपने पुण्यों व पापों का हिसाब इंसान को खुद ही भोगने पड़ते हैं ...
इसलिए,, बंधुओ... मरने के बाद इस संसार से कोई नाता नहीं रहता केवल अपने कर्म फल ही शेफ रहते हैं।

शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त सं किर
*सैकड़ों हाथों से जमा तो करो लेकिन हज़ारों हाथों से बांटो भी।*

बोलिए बृंदाबन-बिहारीलाल की जय!* 🌹🙏🏽

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